Moon Economy : चांद के साउथ पोल पर पहुंचते ही भारत के हाथ कैसे लग जाएगा खजाना, जानिए

कुछ ही घंटों बाद चंद्रयान-3 चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करने जा रहा है। आशा करते हैं कि यह सॉफ्ट लैंडिंग पूरी तरह सफल होगी। भारत के स्पेस मिशन के लिए यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी और एक ऐसे देश के लिए यह और भी अधिक बड़ी बात है, जिसकी स्पेस एजेंसी इसरो काफी लिमिटेड बजट के साथ काम करती है। चंद्रयान-3 के चांद पर लैंड होते ही भारत ऐसा करने वाला अमेरिका, चीन और रूस के बाद चौथा देश बन जाएगा। साथ ही भारत चांद के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने वाला दुनिया का पहला देश बन जाएगा। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती। वैज्ञानिक प्रयोगों के अलावा चंद्रयान-3 भारत के लिए मून इकॉनोमी में अरबों डॉलर भी लेकर आएगा।

भारत बनाने जा रहा इतिहास

रूस, अमेरिका, जापान और साउथ करोया जैसे देशों में चांद पर पहुंचने और वहां बेस बनाने की होड़ मची हुई है। सबकी नजर चांद के साउथ पोल पर है। इस रेस में रूस पीछे छूट गया है। रूस का लूना-25 मिशन फेल होने के बाद अब भारत इतिहास रचने जा रहा है। आज शाम 6 बजकर 4 मिनट पर 25 किलोमीटर की ऊंचाई से लैंडर विक्रम की सॉफ्ट लैंडिंग कराई जाएगी। चांद पर जाने की रेस के पीछे मून इकोनॉमिक्स है।

क्यों खास होगी चंद्रयान-3 की रिसर्च?

लूना-25 और चंद्रयान से पहले लॉन्च हुए सभी यानों ने चांद की भूमध्य रेखा पर उतरने का प्रयास किया था। क्योंकि वहां उतरना आसान है। वहीं, चांद के साउथ पोल पर उतरना काफी मुश्किल है। चंद्रमा के साउथ पोल पर बने गड्ढों में 2 अरब वर्षों से सूर्य की रोशनी नहीं पहुंची है। यहां का तापमान -230 डिग्री सेल्सियस तक कम हो सकता है। बेहद कम तापमान के कारण यहां की मिट्टी में जमा चीजें लाखों वर्षों से वैसी ही हैं। यहां की मिट्टी की जांच से कई नई चीजें सामने आएंगी। माना जा रहा है कि यहां पानी बर्फ के रूप में मौजूद हो सकती है। चंद्रयान-3 की रिसर्च से सौर परिवार के जन्म, चंद्रमा और पृथ्वी के जन्म के रहस्यों जैसी कई बातों का पता चल सकता है। 25 सितंबर 2009 को भारत के इसरो ने चांद पर पानी होने की घोषणा की थी। चांद पर पानी है तो वहां बेस भी बनाया जा सकता है। वहां, इंसानों को बसाने की प्लानिंग भी हो सकती है। ऐसे में चंद्रयान-3 द्वारा की गई खोज काफी अहम होगी।

चंद्रयान-3 की रिसर्च से ऐसे बनेंगे अरबों डॉलर

भारत ने जिस हेवी लिफ्ट लॉन्च व्हीकल से चंद्रयान-3 को लॉन्च किया है, उसका नाम LVM3-M4 है। कुछ समय पहले अमेजन के फाउंडर जेफ बेजोस की कंपनी ब्लू ओरिजिन ने इसरो के LVM3 रॉकेट के इस्तेमाल के लिए अपनी रुची दिखाई थी। कंपनी इसरो के रॉकेट का इस्तेमाल कमर्शियल और स्पेस टूरिज्म के लिए करना चाहती है। एलन मस्क की स्पेस एक्स जैसी कई कंपनियां चांद तक ट्रांसपोर्ट सर्विस देना चाहती हैं। वे इसे एक बड़ा बिजनस मान रही हैं। सरकारों के अलवा आईस्पेस और एस्ट्रॉबॉटिक जैसी निजी कंपनियां चांद तक कार्गो ले जाने की तैयारी कर रही हैं। भारत के चंद्रयान-3 द्वारा की गई खोज इस इस मून इकॉनोमी के लिए बड़े दरवाजे खोलेगी। क्योंकि जानकारी हमारे पास होगी, तो बिजनस भी हमारे पास ही आएगा।

कितनी बड़ी होगी मून इकॉनमी

साल 2040 तक मून इकॉनमी के 4200 करोड़ डॉलर के होने का अनुमान है। यह अनुमान प्राइस वॉटरहाउस कूपर का है। इसके अनुसार चांद तक ट्रांसपोर्टेशन का बिजनस 2040 तक 42 अरब डॉलर तक जा सकता है। इसके अनुसार मून इकॉनमी के 2026 से 2030 तक 19 अरब डॉलर, 2031 से 2035 तक 32 अरब डॉलर और 2036 से 2040 तक 42 अरब डॉलर तक जाने का अनुमान जताया है।

बात सिर्फ ट्रांसपोर्टेशन तक ही नहीं है। भारत के पास जो डेटा होगा, उससे भी बिजनस किया जा सकता है। कई देश हैं, जो चांद पर सफल लैंडिंग नहीं कर सकते हैं। वे रिसर्च के लिए भारत से करोड़ों डॉलर में डेटा खरीद सकते हैं। इससे वे बिना चांद पर जाए अपनी रिसर्च कर सकते हैं। चांद पर पानी मिलता है, तो उस पानी से ऑक्सीजन बनाई जा सकती है। इससे भविष्य में वहां बेस भी बनाए जा सकते हैं। एक अनुमान के अनुसार साल 2030 तक चांद पर 40 और साल 2040 तक 1000 एस्ट्रोनॉट रह रहे होंगे। इसके लिए चंद्रयान-3 की रिसर्च काफी काम आएगी।

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