।। मर मर अमर हुई मेवाड़।।
आज मैं उदयपुर स्थापना दिवस के सुअवसर पर आप सभी को बहुत-बहुत बधाई अर्पित करता हू। मेवाड़ ने स्वतंत्रता और स्वाभिमान के लिए अनेक लड़ाइयां लड़ी हैं। आज भी ऐसा
एक समय आया है जब देष के सामने एक अदृृष्य शत्रु के विरूद्ध जंग लड़ी जा रही है, और
भविष्य में भी लड़नी बाकी है। इस परिक्षा के क्षण में सभी नागरिकों से अनुरोध करता हू कि वे पूरी निष्ठा से इसका सामना करें और जल्द से जल्द इसे हराकर अपना पराकम सिद्ध करें। केन्द्र एवं राज्य सरकारों के निर्धारित दिषा-निर्देषों की हमें एकझूट होकर पालना करनी है और इस जंग को फतह करना है।
अब समय आ गया है जब उदयपुर के भविष्य के निर्माण की रूपरेखा के बारे में चिंतन करना अत्यंत अनिवार्य हो गया है। अब पुनः बदलाव का समय आ गया है। आने वाले समय को मददेनजर रखते हुए उदयपुर को हम केवल पुराने उदयपुर जैसा स्थापित करने की चेष्टा करें तो, हमारे लिए एक बहुत बड़ी भुल होगी।
अपने जीवन पर कोरोना काल कोविड-19 का बहुत भारी प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है, एतदर्थ उदयपुर के भविष्य की नीतियां निर्धारित करते समय हमें इन बिन्दुओं पर विषेष ध्यान देना होगा कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य की आवष्कता अनुसार कैसे और क्या-क्या परिर्वतन करना अति आवष्यक है। समय किसी के लिए ठहरता नहीं है और हमें परिस्थितियों के अनुरूप बदलना होगा। हमें प्रकृृति के इस बदलाव को बारिकी से समझ कर सभी प्रकार से नीतियां अनुकूल बनानी होगी। जिस प्रकार चित्तौड़गढ़ को सुरक्षित रखना बड़ा कठीन था तब महाराणा उदय सिंह जी ने बुद्धिमता का परिचय देते हुए समय रहते मेवाड़ की नई राजधानी की उपयुक्त स्थान पर 1553 ईस्वी में स्थापना की, उसी प्रकार कोरोना काल के बाद हमें भविष्य में कई बड़े निर्णय लेने होंगे और कई बदलाव करने होगें। जो कि लम्बे समय तक उपयोगी सिद्ध होगा। आने वाले दौर में आवष्यकता के अनुसार भविष्य की तस्वीर बहुत हद तक बदल जाएगी।
स्मरण रहे कि राणा सांगा की सेना व्यवसायिक सैनिकों से नहीं खड़ी की गई थी, सभी सैनिक अपने मन से राणा सांगा के छत्र तले युद्ध करने को सारे भारतवर्ष से एकत्रित हुए।
यह इस बात का ध्योतक है कि सफल सेना का निर्माण करने के लिए सेनापति और सैनिक के बीच में आध्यात्मिक एकता और अटूट विष्वास होना चाहिए। जिस कारण से युद्ध हो रहा है उसमें सेनापति और सैनिकों का एक मत होना आवष्यक है। सैनिकों को प्रेरित करने की
षक्ति एवं उनमें विष्वास जागृृत करने की क्षमता होना अति आवष्यक है। यदि राणा सांगा
स्वयं युद्ध में 84 घाव नहीं खाते तो सेना युद्ध के मध्य से ही भागती नज़र आती।
ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे केन्द्र और राज्य सरकार के नेताओं ने उक्त भावनाओं से पे्ररीत हो इन आदेषों-निर्देषों का निर्माण किया है। मैं उन सभी को नमन करता हूॅ।
मेरे लिए बड़ी प्रसन्नता का विषय है कि उदयपुर में इस भीषण महामारी का प्रकोप न के समान रहा, यह परिणाम प्राप्त करना अपने आप में मामुली बात नहीं है। इस परिणाम को प्राप्त करने में बहुतों का योगदान रहा है, भारत सरकार और राजस्थान सरकार के समय-समय पर आदेष-निर्देष हम सबका मार्गदर्षन करते रहे एवं प्रोत्साहित करते रहे। इन निर्देषों के निर्माण में जिन जिन का योगदान रहा उन सभी को मैं प्रणाम करता हॅू।
यह कहना बिल्कुल अतिष्योक्ति नहीं होगा कि उदयपुर जिला प्रषासन, स्वास्थ्य विभाग एवं पुलिस विभाग ने जिस कर्मनिष्ठा से इन निर्देषों का पालन किया और इसे कार्यान्वित किया, इसके लिए मैं इन सभी को नमन करता हूॅ।
जिन जिन योद्धाओं ने स्वयं एवं अपने परिवार की चिन्ता न करके इस अदृष्य शत्रु से युद्ध
क्षेत्र पर पैदल ही समर किया है, मैं उन सभी योद्धाओं को भी नमन करता हूॅ।
इतिहास गवाह है कि मेवाड़ ने अब तक अनेक युद्ध किये है, कुछ युद्ध में जितनी सफलता वांछनीय थी उतनी नहीं मिली। परंतु मेवाड़ ने बाद में कई बार प्रयत्न कर उन सफलताओं को वापस पाया हैै। मुझे आषा ही नहीं पूर्ण विष्वास है कि उदयपुरवासी भी इस युद्ध में विजयी होंगे। मुझे एक ऐतिहासिक पंक्ति याद आती है जो आज के इस परिपेक्ष में बिलकुल सटीक सिद्ध होती है। ‘‘मर मर अमर हुई मेवाड़’’, जो पुनः सत्य सिद्ध होगी।
-अरविन्द सिंह मेवाड़