भारतीय शास्त्रीय संगीत संध्या में उस्ताद साबिर सुल्तान खान ने छेडे़ सारंगी पर सुर|

उदयपुर, 29 फरवरी। महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउण्डेशन वार्षिक सम्मान की पूर्व संध्या पर जगमंदिर पैलेस में आयोजित ‘भारतीय शास्त्रीय संगीत समारोह’ में सारंगी के उस्ताद साबिर सुल्तान खान ने तबलें के उस्ताद फज़ल कुरैशी के संग कई मनमोहक प्रस्तुतियां प्रदान की।

फाउण्डेशन के ट्रस्टी लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने अपनी सुपुत्री मोहलक्षिका संग दीप प्रज्ज्वलन कर हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत समारोह का शुभारम्भ किया।
संगीत संध्या में फाउण्डेशन के अध्यक्ष एवं प्रबंध न्यासी अरविन्द सिंह मेवाड़ अपने परिवार के संग तथा 38वें सम्मान समारोह के अध्यक्ष डाॅ. के. कस्तूरीरंगन उपस्थित थे। संगीत संध्या का आरम्भ करते हुए सारंगी के उस्ताद साबिर सुल्तान खान ने सर्वप्रथम ‘विलम्बित तीन ताल’ और ‘ध्रुत तीन ताल’ में ‘राग चन्द्रकौंस’ प्रस्तुत किया। संगीत संध्या में सारंगी वादन से चली इन मोहक धुनों की बहार से श्रोता मंत्रमुग्ध हो गये। सारंगी पर धुनों की बहार कभी धीमी, कभी मध्यम तो कभी तीव्रता लिए हुई थी। प्रांगण में देश के संगीत प्रेमियों संग विदेशी मेहमान भी इस जीवंत कला विरासत से अभिभूत हुए बिना न रह सके।

उस्ताद ने आगे लोक गायन में ‘गणगौर’ की ‘दीप चन्दी ताल’ में प्रस्तुत किया। यह राजस्थान की जीवित मुखर परम्परा का प्रमुख हिस्सा है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में लोक गायकी अपना मौलिक व सम्मानजनक स्थान रखती है। उस्ताद साबिर के संग उस्ताद फजल ने तबले पर संगत देते हुए एक के बाद एक मंत्रमुग्ध प्रस्तुतियों से संगीत की इस संध्या को यादगार बना दिया।
उस्ताद साबिर सुल्तान खान सारंगी वादक के ख्यातनाम कलाकार है। आपका जन्म जोधपुर में पùभूषण उस्ताद सुल्तान खान के यहाँ हुआ। आपकी प्रारम्भिक संगीत शिक्षा अपने ही परिवार के नामी सितारों दादा उस्ताद गुलाब खान, पिता उस्ताद सुल्तान खान एवं चाचा उस्ताद नासिर खान के संरक्षण में हुई। मात्र छह वर्ष की आयु से ही दादा उस्ताद गुलाब खान के सान्निध्य में आपने संगीत के गुर सीखे। आपने अपने पिता के साथ कई एकल संगीत कार्यक्रमों में मंच साझा कर चुके है।

समारोह के अंत में महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन के ट्रस्टी लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने संगीत के दोनों प्रख्यात उस्तादों को सरोपाव प्रदान कर, मेवाड़ में कला और कलाकारों के आदर-सम्मान की परम्परा का निर्वहन किया।

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