क्षत्रिय समाज अपनी कुल परम्पराओं और अधिकारों को विस्मृत न करें – श्रीजी अरविन्द सिंह मेवाड़

कच्छ राजवंष के तीसरे पूर्व शासक, 85 वर्षीय महाराव प्रागमल (तृतीय) की ऑनलाइन शोक सभा में मेवाड़ ने रखे अपने विचार।
kshatriya society should not forget its traditions and rights

अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा (1897) द्वारा गुजरात के जडे़जा वंष कच्छ राजवंष के तीसरे पूर्व शासक, प्रभु श्रीकृष्ण के वंषज 85 वर्षीय महाराव प्रागमल (तृतीय) के कोरोना से निधन होने पर जूम मीटींग से शोक सभा का आयोजन किया गया। महाराव प्रागमल ने अपने पश्चात उस गद्दी का कोई भी महाराव नहीं होगा ऐसी ईच्छा व्यक्त की थी। उसे लेकर शोक सभा में श्रीजी अरविन्द सिंह मेवाड़ ने कहा कि राजा महाराजा की परम्परा व्यक्तिगत, कुलीन संविधान से चलती आई है अतः यह उनके नियंत्रण में नहीं था कि वे इस तरह की घोषणा करें। हमें हमारी सनातन निज परम्परा का निर्वाह आवष्यक रूप से करना चाहिए क्योंकि इन पद, उपाधि एवं परम्पराओं को आगे बढ़ाने के लिए पूर्वजों ने अपूर्व बलिदान दिए थे उनके माध्यम से ही आगे आने वाली पीढ़ी को सामाजिक दायित्व एवं कुल परम्परा को हस्तान्तरित किया जाता है अतः वंषज को प्रतिबाध करना ठीक नहीं। क्षत्रिय समाज में इस तरह की परिपाटी पर चिन्तन हो क्योंकि यह निधी इस तरह की नहीं कि इसे तीन व्यक्तियों की कमेटी के हवाले कर दिया जाए। भौतिक सम्पत्ति का बंटवारा होता आया पर कुल के पहचान की निधी से अक्षुण्य बनाना हमारी आवष्यकता एवं जिम्मेदारी भी है। महासभा अध्यक्ष राजा मानवेन्द्र सिंह (पूर्व सांसद मथुरा), वागानेर केसरी सिंह, महाराज जसपुर, देवव्रत सिंह सिरोही, हेमेन्द्र सिंह जैसलमेर, रणसिंह जूदेव, अनिरुद्र सिंह, सतीषचन्द्र देवड़ा, तमिलनाडू सभा अध्यक्ष डॉ. गुणा, ऋषिराज सिंह, आरती सिंह गुजरात, आषुतोष सिंह सिसोदिया ने भी शृद्धांजलि देते हुए इस विचार का समर्थन किया कि वंष को समाप्त नहीं किया जा सकता अतः समाज इस पर चिन्तन करेगा।

महाराव प्रागमल (तृतीय)

कच्छभुज में आए भूकम्प के समय महाराव प्रागमल ने अन्न का भण्डारा एवं आवास उपलब्ध करवा कर इस विभिषिका से प्रभावित लोगों की मदद की थी।
यह भी धातव्य है कि इनकी पत्नी प्रीति देवी (राजकुमारी त्रिपुरा) भी कोरोना से पीड़ित है तथा उपचाररत है।

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